Mirdha Vs Beniwal: नागौर सीट पर जाटों का दबदबा, अब दो भागों में बंटने से किसे होगा नुकसान?

Mirdha Vs Beniwal: नागौर, राजस्थान। लोकसभा चुनाव में कई सीटों पर आपसी विवाद चुनाव से भी ज्यादा हावी हो रहा है। राजस्थान की नागौर सीट पर ऐसा ही कुछ होता नज़र आ रहा है। हालांकि दोनों ही नेताओं ने अपना दल बदल कर टिकट लिया। हनुमान बेनीवाल ने भाजपा से अपना नाता तोड़ा तो ज्योति मिर्धा ने काँग्रेस का साथ छोड़ा। इस सब के बीच नागौर की जनता के वोटों का बड़ा बंटवारा होता नज़र आ रहा है।

जाट वोटों के बँटवारे से किसे लाभ?

वैसे सीधे तौर पर देखा जाए तो काँग्रेस और india गठबंधन से जुड़े नेता हनुमान बेनीवाल की राजनीति की मुख्य धारा में जाट नेता की ही छवि है। दूसरी तरफ ज्योति मिर्धा भी जाट परिवार से ही आती हैं। इन दोनों के बीच चुनावी टक्कर होने से आपसी जाट वोट बंटवारे में हैं। इन्हीं जाट वोटों के बंटने से अब हार जीत ताकत स्थानीय दूसरी जातियों में जाती दिख रही है। एक ही जाति के दो बड़े नेताओं के बीच चुनावी जंग होने से जाट जाति के वोट दो खेमों में बंट जाएंगे। ऐसी स्थिति में जिस भी नेता ने दूसरे जातियों के मतदाताओं को साध लिया वो जीत पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने में सक्षम हो जाएगा।

नागौर में किस मुद्दे पर लड़ा जा रहा चुनाव?

वैसे तो नागौर में पानी, सड़क, बिजली से जुड़े कई स्थानीय मुद्दे हैं। परंतु बड़ा मुद्दा जाति और उससे जुड़ी चीजों का है। नागौर में 73 प्रतिशत से ज्यादा आबादी गावों में रहती है। किसानों की समस्याओं पर मुख्य ध्यान दिया जा रहा है। जबकि शहरों में भाजपा बड़े मुद्दों पर बात कर रही है, जिसमें राम मंदिर और 370 जैसे बड़े फैसले लिए गए। इन्हीं मुद्दों पर काँग्रेस को बार बार घेरा जा रहा है। काँग्रेस बेरोजगारी और धर्म निरपेक्षता को मुख्य धारा में जोड़ कर वोट मांग रही है। गाँव में जाति और किसानों के मुद्दों पर बात कर रहे हैं, उसी तरह की चर्चाएँ नेताओं को गांवों में करते हुए देखा जा रहा है।

ज्योति मिर्धा किन मुद्दों पर मजबूत?

ज्योति मिर्धा के साथ देश की सबसे बड़ी पार्टी के सबसे बड़े नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम जुड़ा हुआ है। इसके साथ ही दशकों पुरानी पैतृक राजनीति का इतिहास भी स्थानीय और राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा प्रभाव रखती है। जाट बहुल इलाका और नागौर की ग्रामीण अधिकता धरती पर जाति का प्रभाव भी अधिक होता है। खुद का भी राजनीतिक इतिहास है क्योंकि काँग्रेस में रहते हुए सांसद पद पर भी ज्योति मिर्धा रही है। अपने अलग से समर्थकों का एक बड़ा साथ भी है।

ज्योति मिर्धा किन पहलुओं में कमजोर?

ज्योति मिर्धा के साथ सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि सामने जाट नेता ही चुनावी मैदान में खड़े हैं। पार्टी बदल कर विरोधी पार्टी में ही खुद को शामिल कर लेने से काँग्रेस के सिद्ध वोटों के खफा होने की भी बड़ी आशंका है। काँग्रेस की टिकट पर सांसद रहते समय स्थानीय लोगों में भी संवाद नहीं करने की शिकायत है। इसके अलावा राजनीति में बदलते समय और पार्टी की धाराओं में अपने ही खेमे के कई नेता विरोध में आ सकते हैं। भीतरघात की बड़ी समस्या से लड़ना आसान नहीं होगा।

हनुमान बेनीवाल के जीत के क्या हो सकते हैं फैक्टर?

हनुमान बेनीवाल के क्षेत्र में उनके जाट नेता की छवि का बड़ा लाभ मिल सकता है। काँग्रेस के खेमे में आने के बाद ज्योति मिर्धा के पुराने और काँग्रेस स्थायी वोटों का बड़ा सहारा मिलेगा। इसके साथ ही अल्पसंख्यकों से सीधा जुड़ाव का मौका भी हनुमान बेनीवाल के पास है। राजनीति का पुराना व्यक्तिगत अनुभव भी काम आएगा। 4 बार विधायक का पद और एक बार सांसद का पद संभालने का अनुभव तो काम आएगा ही, साथ ही राजनीति के स्तर पर राष्ट्रीय ओहदा होने का भी लाभ मिलेगा।

हनुमान बेनीवाल संगठन बदल कर भी मजबूत रहेंगे?

हनुमान बेनीवाल जब बार – बार संघटन को बदल कर मैदान में आते हैं तो भीतरघात का डर हमेशा सामने खड़ा होता है। इसके साथ ही गुस्सैल और आक्रमक प्रवृति भी कहीं न कहीं नुकसान का सबब हो सकती है। राजनीतिक विवादों में रहे और हमेशा पक्ष विपक्ष के नेताओं के लिए विवादित बयान देकर खुद के ही राजनीतिक दुश्मनों को बनाने में नुकसान हो सकता है। इसी फहरिस्त में कई काँग्रेस के भी विधायक और नेता शामिल है।

काँग्रेस नहीं दे रहा बेनीवाल का साथ

काँग्रेस के कोई भी बड़े नेता का साथ सीधे तौर पर हनुमान बेनीवाल को मिलता नहीं दिखाई दे रहा है और ना ही बेनीवाल के समर्थन में किसी स्टार प्रचारक ने अभी तक कोई सभा की है। ऐसा भविष्य में भी होना अभी तक तय नहीं हुआ है। इससे साफ नज़र आ रहा है कि काँग्रेस बहुत ज्यादा ज़ोर नागौर सीट पर जीत के लिए नहीं लगा रही है।

ज्योति मिर्धा को आरएसएस का साथ

ज्योति मिर्धा के भाजपा में शामिल होने के बाद से भाजपा के स्थानीय नेताओं के साथ साथ बड़े नेताओं ने भी प्रचार और मतदाताओं के लिए ज़ोर लगाना शुरू कर दिया है। इसके अलावा आरएसएस का भी पूरा साथ ज्योति मिर्धा को मिल रहा है। आरएसएस का बड़ा नाम विनय सहस्त्रबुद्धे भी भाजपा के साथ मिल कर ज्योति मिर्धा के लिए प्रचार में चुनावी मैदान में है।

9 उम्मीदवार नागौर के मैदान में

राजस्थान के नागौर के चुनावी मैदान में 9 उम्मीदवार हैं। जिसमें मुख्य लड़ाई तो ज्योति मिर्धा और हनुमान बेनीवाल के बीच में ही है। परंतु दूसरे उम्मीदवार वोट बांटने में बड़े भूमिका निभाएंगे। बसपा के पास भी मतदाताओं को तोड़ने का बड़ा समर्थन है। हालांकि जीत के आसपास भी होना बसपा प्रत्याशी के लिए मुश्किल नज़र आ रहा है। ओबीसी और जाट वोट यहाँ निर्णायक होने वाले हैं।

पिछले चुनावी परिणाम

पिछले चुनावों में परिणाम का जिक्र करें तो 2009 में ज्योति मिर्धा ने काँग्रेस की टीकेट पर जीत हासिल की थी। परंतु 2014 की मोदी लहर में भाजपा की तरफ से चुनाव लड़ रहे सीआर चौधरी को जनता ने अपना मत देकर विजयी बनाया। जबकि 2019 में हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने नागौर सीट पर जीत दर्ज की और भाजपा को समर्थन दिया। काँग्रेस की ज्योति मिर्धा को ही हराया था। इस बार दल बदल कर फिर से दोनों आमने सामने हैं।

चुनाव प्रचार में दोनों खेल रहे इमोशनल खेल

चुनाव प्रचार में हनुमान बेनीवाल और ज्योति मिर्धा जो भी जनसभाएं या रैलियाँ कर रहे हैं उनमें भावुक भाषणों का ही उपयोग करते नज़र आ रहे हैं। ज्योति मिर्धा ने कहा कि वो तो चिड़िया है, उसे बचाना या मारना दोनों ही जनता के हाथ में है। वहीं काँग्रेस के साथ आए हनुमान बेनीवाल को स्थानीय मजबूत दल काँग्रेस होने से बड़ा लाभ मिलने लगा है। स्थानीय मुद्दों को लेकर भी बेनीवाल जनता में अपनी जगह बना रहे हैं।

विधानसभा में 8 सीटों में 4 काँग्रेस के पास और 2 भाजपा के पास

काँग्रेस की स्थानीय स्थिति को देखा जाए तो वो वर्तमान में भाजपा से ज्यादा मजबूत है। यानि कि नागौर लोकसभा क्षेत्र में आने वाली 8 विधानसभा सीटों में से काँग्रेस के पास 4 विधायक है, वहीं भाजपा के पास 2 ही विधायक विजयी हुए। जबकि भाजपा ने राजस्थान में सरकार बनाई। 2 सीटों में से एक बेनीवाल की आर एल पी के पास और एक निर्दलीय के पास जीत के तौर पर है। भाजपा ने राजनीतिक स्तर पर अपना दाव खेलते हुए अभी नागौर लोकसभा क्षेत्र के दोनों ही विधायकों को राज्य सरकार में मंत्री का पद दिया है।

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