Guna-Shivpuri LokSabha Seat: गुना में जातीय समीकरणों में उलझा ज्योतिरादित्य-यादवेंद्र के बीच मुकाबला, क्या आसान होगी सिंधिया की राह?

Guna-Shivpuri LokSabha Seat

Guna-Shivpuri LokSabha Seat: गुना। देश में चल रहे लोकसभा चुनाव ने कई नेताओं की नींद उड़ा कर रख दी है। बड़े-बड़े नेताओं की साख दांव पर लगी हुई है। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना-शिवपुरी लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में हैं। इस सीट को खास इसलिए भी माना जा रहा है, क्योंकि साल 2019 में सिंधिया को यहां से करारी हार मिली थी। पिछली बार जब वे कांग्रेस में थे तो उन्हें डॉ. केपी यीदव ने हराया था और इस बार कांग्रेस के यादवेंद्र सिंह उनके सामने हैं। फिलहाल इस सीट पर जातीय समीकरण ने एक बार फिर से सिंधिया को उलझा दिया है। उनकी राह आसान नहीं है।

सिंधिया को मिल रही कांटे की टक्कर

पार्टी ने केपी यादव का टिकट काटकर सिंधिया को दिया है। कांग्रेस ने भी नहले पर दहला मारते हुए क्षेत्र के कद्दावर नेता रहे स्वर्गीय राव देशराज सिंह यादव के बेटे राव यादवेंद्र सिंह को मैदान में उतारा है। बता दें कि क्षेत्र में यादव मतदाताओं की तादात ज्यादा है। केपी सिंह यादव का टिकट काटे जाने के कारण उनमें नाराजगी भी है। क्षेत्रीय समीकरणों के कारण जाटव, गुर्जर और लोधी मतदाताओं का भी भाजपा खासकर सिंधिया से मोह भंग हुआ है। क्षेत्र में यदि इन समाजों को नहीं साधा गया तो सिंधिया मुश्किल में आ सकते हैं। हालांकि, चुनाव में पलड़ा उनका ही भारी दिख रहा है। (Guna-Shivpuri LokSabha Seat)

इसलिए फंसा दिखता है गुना का चुनाव

गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र में सिंधिया परिवार का काफी सालों से दबदबा रहा है। लेकिन 2019 का चुनाव हारने के बाद सिंधिया लंबे समय तक क्षेत्र के लोगों से गुस्सा दिखाई पड़े। विधानसभा चुनाव में भी उनके समर्थक उस तादाद में नहीं जीते, जैसी जीत कांग्रेस में रहकर 2018 में मिली थी। इसकी वजह से काफी समय तक ये क्षेत्र उपेक्षित रहा। अब भाजपा ने अपने उस सांसद केपी सिंह यादव का  टिकट काट दिया, जिसने पहली बार सिंधिया परिवार के सदस्य को हराने का कीर्तिमान रचा था। ऐसे में भले मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव हैं लेकिन यादव समाज कांग्रेस के राव यादवेंद्र सिंह यादव के पाले में जा सकता है।

Guna-Shivpuri LokSabha Seat

अन्य जातियों में लोधी समाज पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की उपेक्षा के कारण नाराज तो है ही, इनका यादव समाज के साथ अघोषित समझौता जैसा हुआ है। पिछौर में यादव समाज ने प्रीतम लोधी को वोट देकर जिताया है। अब लोकसभा चुनाव में लोधी समाज की अहसान चुकाने की बारी है। गुर्जर और जाटव समाज अब एकतरफा नहीं बल्कि बंटा नजर आ रहा है। इससे गुना सीट का चुनाव फंसा दिखता है।

गुना- शिवपुरी में सभी तरह के मुद्दों का असर

जहां तक चुनावी मुद्दों का सवाल है तो गुना-शिवपुरी (Guna-Shivpuri LokSabha Seat) संसदीय क्षेत्र में सभी तरह के मुद्दों का असर है। लोग राष्ट्रीय मुद्दों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर से प्रभावित दिखाई पड़ते हैं। ज्योतिरादित्य की हार के बाद यह क्षेत्र उपेक्षित जैसा रहा। प्रदेश की सरकार ने भी खास ध्यान नहीं दिया। इसकी वजह से लोगों में नाराजगी दिखती है। चंबल-ग्वालियर अंचल का होने से यहां जातीय राजनीति का असर है। यह चुनाव को प्रभावित करेंगे। सिंधिया परिवार ने क्षेत्र के लिए विकास के काफी काम किए हैं। इनका असर भी चुनाव में देखने को मिल रहा है।

विधानसभा सीटों के लिहाज से भाजपा भारी

गुना लोकसभा सीट के तहत तीन जिलों गुना, अशोक नगर और शिवपुरी (Guna-Shivpuri LokSabha Seat) की विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें गुना जिले की बमोरी, गुना, शिवपुरी जिले की पिछोर, कोलारस, शिवपुरी और अशोक नगर जिले की मुंगावली, चंदेरी और अशोक नगर विधानसभा सीटें शामिल हैं। विधानसभा चुनाव नतीजों की दृष्टि से पूरे लोकसभा क्षेत्र में भाजपा भारी दिखती है। भाजपा के पास 6 सीटें हैं तो कांग्रेस के पास सिर्फ दो।

भाजपा ने 6 सीटें कुल 2 लाख 9 हजार 529 वोटों के अंतर से जीती हैं जबकि कांग्रेस की जीत का अंतर महज 23 हजार 169 रहा है। इस तरह भाजपा 1 लाख 86 हजार 360 वोटों की बढ़त पर है। कांग्रेस के लिए इसे कवर कर आगे पहुंचना बेहद कठिन है। पिछली बार भी ऐसा ही हुआ था। कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव में बढ़त ली थी लेकिन (Guna-Shivpuri LokSabha Seat) लोकसभा में ज्योतिरादित्य चुनाव हार गए, इसलिए मतदाताओं के मूड को पढ़ना आसान नहीं है।

तीन जिलों को मिला कर बनी गुना लोकसभा सीट

गुना लोकसभा सीट का भौगोलिक क्षेत्र तीन जिलों में फैला है। इसके तहत आने वाली 8 विधानसभा सीटें तीन जिलों गुना, अशोक नगर और शिवपुरी के अंतर्गत आती हैं। इस सीट (Guna-Shivpuri LokSabha Seat) के राजनीतिक मिजाज की बात करें तो यहां सिंधिया परिवार का ही दबदबा रहा है। 1998 तक इस सीट से राजमाता विजयाराजे सिंधिया भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ती और जीतती रहीं। इसके बाद उनके बेटे माधवराव सिंधिया ग्वालियर छोड़कर गुना से चुनाव लड़ने आ गए तो यह सीट कांग्रेसी हो गई।

1998 का लोकसभा चुनाव यहां से माधवराव सिंधिया जीते। इसके बाद उनका निधन हो गया तो उनकी राजनीतिक विरासत ज्योतिरादित्य ने संभाली। कांग्रेस के टिकट पर उन्होंने 2004, 2009 और 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा और जीता। 2019 में पहली बार उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। उन्हें उनके ही सहयोगी केपी सिंह यादव ने भाजपा में जाकर चुनाव हरा दिया। इसके बाद ज्योतिरादित्य भाजपा में आ गए और यह चुनाव भाजपा के  टिकट पर लड़ रहे हैं।

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यादव, जाटव, लोधी, गुर्जर समाज निर्णायक

गुना लोकसभा क्षेत्र में चार जातियों यादव, लोधी, जाटव और गुर्जर समाज का दबदबा है। क्षेत्र में जाटव समाज के मतदाता लगभग तीन लाख और यादव समाज ढाई लाख के आसपास बताया जाता है। इसके बाद लोधी और गुर्जर मतदाताओं की तादाद है। ये भी लगभग डेढ़-डेढ़ लाख है। 2019 के लोकसभा चुनाव में इन सभी जातियों के मतदाता एकजुट हो गए थे। इसकी वजह से ज्योतिरादत्य सिंधिया 1 लाख 25 हजार 549 वोटों के अंतर से चुनाव हार गए थे।

इस बार भी ये मतदाता किसी का भी खेल बिगाड़ने का माद्दा रखते हैं। यादवों की ज्यादा तादाद में कांग्रेस के पक्ष में जाना तय है जबकि गुर्जर और जाटव मतदाता का ज्यादा हिस्सा भाजपा के पक्ष में जा सकता है। (Guna-Shivpuri LokSabha Seat) इनके अलावा क्षेत्र में वैश्य, ब्राह्मण और क्षत्रिय सहित अन्य समाज भी हैं। इनके प्रभाव में अन्य मतदाता भी रहते हैं। ये भी चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

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