प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मां हीराबा के किस्से

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां हीराबेन को अहमदाबाद के यूएन मेहता अस्पताल में भर्ती कराया गया है। मां के बीमार होने की खबर पाकर पीएम तुरंत दिल्ली से अहमदाबाद के लिए रवाना हो गए। पीएम मोदी और उनकी मां के बीच जबरदस्त बॉन्डिंग है जो तमाम मौकों पर दिखती भी है। कुर्सी पर बैठी मां का नीचे बैठकर पैर धोना, मां का बेटे का माथा चूमना, ममता लुटाना, सिर पर हाथ फेरकर आशीर्वाद देना, बेटा भले ही देश का प्रधानमंत्री हो लेकिन मां का उसको शगुन भेंट करना…हम बात कर रहे हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी मां हीराबेन की। दोनों के बीच जबरदस्त बॉन्डिंग की। मां हीराबेन बीमार हैं, ये खबर सुनकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तुरंत अहमदाबाद के लिए रवाना हो गए। मां तो वैसे भी ममता की मूरत होती हैं, वात्सल्य की सूरत होती हैं। पीएम मोदी ने इसी साल हीराबेन के 100वें जन्मदिन पर ‘मां’ नाम से एक भावुक कर देने वाला ब्लॉग लिखा था जिसमें अपने जीवन पर मां के प्रभाव और उनकी अहमियत को बयां किया था। आइए जानते हैं मोदी और उनकी मां के वो 5 किस्से जो दिल को छू लेंगे।

बच्चे पढ़-लिख सकें इसलिए दूसरों के घरों में साफ करती थीं बर्तन
पीएम मोदी का बचपन अभावों में गुजरा था। वह कभी रेलवे स्टेशन पर चाय बेचा करते थे, ये किस्सा तो वैसे भी बहुत ही मशहूर रहा है। पीएम मोदी ने अपने ब्लॉग में गुरबत के दिनों को याद करते हुए लिखा है कि किस तरह उनकी मां परिवार के गुजारे के लिए दूसरों के घर के बर्तन मांजा करती थीं। उन्होंने लिखा है, ‘मां कभी अपेक्षा नहीं करती थीं कि हम भाई-बहन अपनी पढ़ाई छोड़कर उनकी मदद करें। वो कभी मदद के लिए, उनका हाथ बंटाने के लिए नहीं कहती थीं। मां को लगातार काम करते देखकर हम भाई-बहनों को खुद ही लगता था कि काम में उनका हाथ बंटाएं। मुझे तालाब में नहाने का, तालाब में तैरने का बड़ा शौक था इसलिए मैं भी घर के कपड़े लेकर उन्हें तालाब में धोने के लिए निकल जाता था। कपड़े भी धुल जाते थे और मेरा खेल भी हो जाता था।’ उन्होंने आगे लिखा, ‘घर चलाने के लिए दो चार पैसे ज्यादा मिल जाएं, इसके लिए मां दूसरों के घर के बर्तन भी मांजा करती थीं। समय निकालकर चरखा भी चलाया करती थीं क्योंकि उससे भी कुछ पैसे जुट जाते थे। कपास के छिलके से रूई निकालने का काम, रुई से धागे बनाने का काम, ये सब कुछ मां खुद ही करती थीं। उन्हें डर रहता था कि कपास के छिलकों के कांटें हमें चुभ ना जाएं।
पीएम मोदी ने अपने मां के संघर्षों को याद करते हुए लिखा है, बचपन के संघर्षों ने मेरी मां को उम्र से बहुत पहले बड़ा कर दिया था। वो अपने परिवार में सबसे बड़ी थीं और जब शादी हुई तो भी सबसे बड़ी बहू बनीं। बचपन में जिस तरह वो अपने घर में सभी की चिंता करती थीं, सभी का ध्यान रखती थीं, सारे कामकाज की जिम्मेदारी उठाती थीं, वैसे ही जिम्मेदारियां उन्हें ससुराल में उठानी पड़ीं। इन जिम्मेदारियों के बीच, इन परेशानियों के बीच, मां हमेशा शांत मन से, हर स्थिति में परिवार को संभाले रहीं। वडनगर के जिस घर में हम लोग रहा करते थे वो बहुत ही छोटा था। उस घर में कोई खिड़की नहीं थी, कोई बाथरूम नहीं था, कोई शौचालय नहीं था। कुल मिलाकर मिट्टी की दीवारों और खपरैल की छत से बना वो एक-डेढ़ कमरे का ढांचा ही हमारा घर था, उसी में मां-पिताजी, हम सब भाई-बहन रहा करते थे। उस छोटे से घर में मां को खाना बनाने में कुछ सहूलियत रहे इसलिए पिताजी ने घर में बांस की फट्टी और लकड़ी के पटरों की मदद से एक मचान जैसी बनवा दी थी। वही मचान हमारे घर की रसोई थी। मां उसी पर चढ़कर खाना बनाया करती थीं और हम लोग उसी पर बैठकर खाना खाया करते थे।

हीराबा ने पीएम मोदी से कहा- लोग तुम्हें पहचानते हैं, कुछ तो अच्छा कर रहे हो
पीएम मोदी ने अपने ब्लॉग में उन दिनों को भी याद किया जिस दौर में वह बीजेपी के संगठन के कामकाज में मशगूल थे। उन्होंने एक वाकया बताया कि किस तरह उनकी मां केदारनाथ की यात्रा पर गई थीं तो तमाम लोग उनसे पूछने लगे थे कि क्या आप नरेंद्र मोदी की मां हैं। लोगों ने उनका खूब स्वागत सत्कार किया जिससे वह खूब प्रभावित हुईं। उन्होंने लिखा है, मेरी मां का मुझ पर बहुत अटूट विश्वास रहा है। उन्हें अपने दिए संस्कारों पर पूरा भरोसा रहा है। मुझे दशकों पुरानी एक घटना याद आ रही है। तब तक मैं संगठन में रहते हुए जनसेवा के काम में जुट चुका था। घरवालों से संपर्क ना के बराबर ही रह गया था। उसी दौर में एक बार मेरे बड़े भाई, मां को बद्रीनाथ जी, केदारनाथ जी के दर्शन कराने के लिए ले गए थे। बद्रीनाथ में जब मां ने दर्शन किए तो केदारनाथ में भी लोगों को खबर लग गई कि मेरी मां आ रही हैं। उसी समय अचानक मौसम भी बहुत खराब हो गया था। ये देखकर कुछ लोग केदारघाटी से नीचे की तरफ चल पड़े। वो अपने साथ में कंबल भी ले गए। वो रास्ते में बुजुर्ग महिलाओं से पूछते जा रहे थे कि क्या आप नरेंद्र मोदी की मां हैं? ऐसे ही पूछते हुए वो लोग मां तक पहुंचे। उन्होंने मां को कंबल दिया, चाय पिलाई। फिर तो वो लोग पूरी यात्रा भर मां के साथ ही रहे। केदारनाथ पहुंचने पर उन लोगों ने मां के रहने के लिए अच्छा इंतजाम किया। इस घटना का मां के मन में बड़ा प्रभाव पड़ा। तीर्थ यात्रा से लौटकर जब मां मुझसे मिलीं तो कहा कि कुछ तो अच्छा काम कर रहे हो तुम, लोग तुम्हें पहचानते हैं।

एकता यात्रा में श्रीनगर के लाल चौक पहुंचे थे मोदी, इधर मां हो गईं थीं बेचैन
अपने ब्लॉग में पीएम मोदी ने लिखा है कि किस तरह एकता यात्रा के दौरान फगवाड़ा में एक आतंकी हमला हुआ था जिससे उनकी मां उन्हें लेकर बहुत चिंतित हो गईं थीं। उन्होंने लिखा है, आपने भी देखा होगा, मेरी मां कभी किसी सरकारी या सार्वजनिक कार्यक्रम में मेरे साथ नहीं जाती हैं। अब तक दो बार ही ऐसा हुआ है जब वो किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में मेरे साथ आई हैं. एक बार मैं जब एकता यात्रा के बाद श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहरा कर लौटा था, तो अमदाबाद में हुए नागरिक सम्मान कार्यक्रम में मां ने मंच पर आकर मेरा टीका किया था। मां के लिए वो बहुत भावुक पल इसलिए भी था क्योंकि एकता यात्रा के दौरान फगवाड़ा में एक हमला हुआ था, उसमें कुछ लोग मारे भी गए थे। उस समय मां मुझे लेकर बहुत चिंता में थीं। तब मेरे पास दो लोगों का फोन आया था। एक अक्षरधाम मंदिर के श्रद्धेय प्रमुख स्वामी जी का और दूसरा फोन मेरी मां का था। मां को मेरा हाल जानकर कुछ तसल्ली हुई थी। दूसरी बार वो सार्वजनिक तौर पर मेरे साथ तब आईं थी जब मैंने पहली बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। 20 साल पहले का वो शपथग्रहण ही आखिरी समारोह है जब मां सार्वजनिक रूप से मेरे साथ कहीं उपस्थित रहीं हैं। इसके बाद वो कभी किसी कार्यक्रम में मेरे साथ नहीं आईं। जब हीरा बा ने मोदी से कहा- मेरी कोख से जन्मे जरूर लेकिन तुम्हें भगवान ने गढ़ा है. पीएम मोदी ने अपने ब्लॉग में लिखा है, ‘मुझे एक और वाकया याद आ रहा है। जब मैं सीएम बना था तो मेरे मन में इच्छा थी कि अपने सभी शिक्षकों का सार्वजनिक रूप से सम्मान करूं। मेरे मन में ये भी था कि मां तो मेरी सबसे बड़ी शिक्षक रही हैं, उनका भी सम्मान होना चाहिए। हमारे शास्त्रो में कहा भी गया है माता से बड़ा कोई गुरु नहीं है- ‘नास्ति मातृ समो गुरुः’। इसलिए मैंने मां से भी कहा था कि आप भी मंच पर आइएगा। लेकिन उन्होंने कहा कि “देख भाई, मैं तो निमित्त मात्र हूं। तुम्हारा मेरी कोख से जन्म लेना लिखा हुआ था। तुम्हें मैंने नहीं भगवान ने गढ़ा है।”। ये कहकर मां उस कार्यक्रम में नहीं आई थीं। मेरे सभी शिक्षक आए थे, लेकिन मां उस कार्यक्रम से दूर ही रहीं।
मैं घर छोड़ने वाला हूं ये पहले ही समझ गई थीं मां : मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि जब उन्होंने घर त्यागकर समाजसेवा और राजनीति में कदम रखने का फैसला किया तो उससे पहले ही मां को इसका आभास हो गया था। उन्होंने लिखा है, मैंने जब घर छोड़ने का फैसला कर लिया, तो उसे भी मां कई दिन पहले ही समझ गई थीं। मैं मां-पिताजी से बात-बात में कहता ही रहता था कि मेरा मन करता है कि बाहर जाकर देखूं, दुनिया क्या है। मैं उनसे कहता था कि रामकृष्ण मिशन के मठ में जाना है। स्वामी विवेकानंद जी के बारे में भी उनसे खूब बातें करता था। मां-पिताजी ये सब सुनते रहते थे। ये सिलसिला कई दिन तक लगातार चला। एक दिन आखिरकार मैंने मां-पिता को घर छोड़ने की इच्छा बताई और उनसे आशीर्वाद मांगा। मेरी बात सुनकर पिताजी बहुत दुखी हुए। वो थोड़ा खिन्न होकर बोले- तुम जानो, तुम्हारा काम जाने। लेकिन मैंने कहा कि मैं ऐसे बिना आशीर्वाद घर छोड़कर नहीं जाऊंगा। मां को मेरे बारे में सब कुछ पता था ही। उन्होंने फिर मेरे मन का सम्मान किया। वो बोलीं कि जो तुम्हारा मन करे, वही करो। हां, पिताजी की तसल्ली के लिए उन्होंने उनसे कहा कि वो चाहें तो मेरी जन्मपत्री किसी को दिखा लें। हमारे एक रिश्तेदार को ज्योतिष का भी ज्ञान था। पिताजी मेरी जन्मपत्री के साथ उनसे मिले। जन्मपत्री देखने के बाद उन्होंने कहा कि उसकी तो राह ही कुछ अलग है, ईश्वर ने जहां तय किया है, वो वहीं जाएगा।
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